प्रेम का केवल ज़िक्र करने से जीवन में प्रेम नहीं आएगा। अगर हम चाय पीते हैं और सिर्फ शक्कर का नाम लेकर चाय में चम्मच घुमा दें तो वो मीठी नहीं हो जाएगी। चाय को मीठा करने के लिए हमें उसमें चीनी डालनी होगी। ऐसे ही इस परमात्मा के ज्ञान को लेकर हमें भक्ति भरा जीवन जीते हुए अहंकार से दूर रहना होगा।
- सतगुरु माता सुदीक्षा जी
सुख या दुख बाहरी चीज़ों पर निर्भर नहीं करते। ये वास्तव में आंतरिक अवस्था के अधीन हैं। हमने हमेशा अपने मन की अवस्था इस निरंकार के साथ जोड़कर रखनी है जो आनंद का रूप है।
- सतगुरु माता सुदीक्षा जी
दूसरों का नुकसान करने से पहले हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम शायद पहले अपना ही नुकसान कर रहे होते हैं। अगर पड़ोसी के घर को आग लगती है तो उसका प्रभाव हमारे घर तक भी निश्चय ही आएगा।
- सतगुरु माता सुदीक्षा जी
हंकार सूक्ष्म रूप से भी जीवन में आ जाता है, इसलिए इससे सावधान रहना जरूरी है। कई बार इन्सान को ऐसा लगता है कि उसके बगैर कोई कार्य नहीं हो सकता जबकि सच यह है कि सिकंदर जैसे राजा को भी अंत में खाली हाथ ही जाना पड़ा।
- सतगुरु माता सुदीक्षा जी
अगर हम किसी का दुःख महसूस नहीं करेंगे, हम दूसरे को मरता-कुचलता देखकर अपने मन में खुशी महसूस करते रहेंगे, तो हम धार्मिक नहीं। धार्मिक व्यक्ति किसी दूसरे को पीड़ा दे ही नहीं सकता। किसी दूसरे को रोता हुआ देखकर हंस नहीं सकता
- बाबा हरदेव सिंह जी
अपने भ्रमों को मिटाना ही धर्म है, पारब्रह्म को भजना धर्म है। भ्रम यही है कि अपने-पराये का भेदभाव करना। भ्रम यही है कि अपने-आपको ऊंचा मानना, दूसरे को नीचा मानना। भ्रम यही है कि संसार जो मिथ्या है, इसको सदैव सच मानकर वैसा ही व्यवहार और इस्तेमाल करना। ये सभी भ्रम दूर हो जाते हैं, जब प्रभु को जान जाते हैं।
- बाबा हरदेव सिंह जी
अहंकार को त्याग कर ही सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। कर्म भी तभी श्रेष्ठ है, तभी कल्याणकारी है, जब उसमें कर्तापन का अहंकार भी न रहे। ऐसा कर्म ज्ञानवान महापुरुष ही कर सकते हैंः क्योंकि वे प्रत्येक कर्म का करने वाला एक दातार-प्रभु, एक निरंकार को ही देखते हैं।
- बाबा हरदेव सिंह जी
भक्त और भगवान को जोड़ने का साधन भक्ति ह भक्त एक खिला हुआ फूल होता है और भक्ति उसकी महक हुआ करती है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
क्या करेगा प्यार वह ईमान से? क्या करेगा वह भगवान से ? जन्म लेकर गोद में इन्सान की। कर न पाया प्यार जो इन्सान से। - *धन निरंकार जी* ।
जिसके जीवन में परमात्मा आ जाता है, जिसे ब्रह्मज्ञान हो जाता है, वह सब के अन्दर परमात्मा को देख कर सब के लिए सेवा-भावना अपने दिल में रखा करता है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
इन्सान ने अपने लिए खुद नरक बना दिया, जब उसने अपने चारों तरफ दीवारें खड़ी कर दीं। कहीं पर जाति की दीवार खड़ी कर दी, कहीं पर रंग भेद की, कही पर भाड्ढा की, कहीं पर मजहब की दीवार खड़ी कर दी। इन दीवारों में बन्द वह केवल अपने आप को ही देखते है, अपने स्वार्थ के लिए ही सब कुछ सोचता है, अपनी लालसाओं की पूर्ति की ओर ही ध्यान देता है। नतीजा है, आपसी टकराव, अलगाव, दुख और कष्ट।
- बाबा हरदेव सिंह जी
जो धार्मिक लोगों में विवाद हैं, टकराव हैं, उनका कारण भी प्रभु को न जानना ही है। अगर प्रभु को जान लें, तो ये झगड़े खुद ब खुद खत्म हो जाएं।-
- बाबा हरदेव सिंह जी
ये सारे लड़ाई-झगड़े, कलह और अ्यान्ति तभी तक है जब तक हमारे हृदय में निराकार ब्रह्म का निवास नहीं होता, हमें ब्रह्मज्ञान नहीं होता, हमारा नाता प्रभु-परमात्मा से नहीं जुड़ता। इसके जीवन में उतरते ही सारा संसार सुखमय हो जाता है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
गुरमुख का स्वभाव गाय की तरह होता है और मनमुख का सांप की तरह। जैसे गाय को हम घास डालते हैं, कई बार हरी घास मिल जाती है, कई दफा हरी घास नहीं भी मिलती है, सूखी घास उसको दे दी जाती है, तब भी गाय हमें दूध ही देती है। दूसरी तरफ सांप को कटोरे में डालकर हम दूध भी दे दें तब भी हम जानते हैं, उसके पास तो विष ही है। वह तो दूध पीकर भी डंक ही लगाता है, क्योंकि उसके पास जो हैं, वही उसने आगे देना है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
जो अपने को नीचा मानता है, वही सबसे ऊंचा, सबसे महान माना जाता है, उसका नाम सन्तों-महापुरुषों की श्रेणी में आ जाता है, पूजने योग्य हो जाता है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
वस्तु कहीं पर है, लेकिन ढूंढीं कहीं और जा रही है। सुखों का साधन तो प्रभु-परमात्मा है, लेकिन इन्सान इन्हें ढूंढ़ रहा है माया में, जो प्रभु की छाया है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
बोल तो हम बहुत सुनते और सुनाते हैं, लेकिन उसके मुताबिक अगर हमारा कर्म नहीं, तो हमें भी लूटने वाले बहुत पड़े हैं। काम भी है, क्रोध भी है, अहंकार भी है, लोभ भी है, ईर्ष्या भी है, ये सभी लूट ले जाने को तैयार हैं ।
- बाबा हरदेव सिंह जी
जैसे फूल की पहचान उसकी महक से होती है, वैसे ही ज्ञानी की पहचान उसके कर्म से होती है।
- बाबा हरदेव सिंह जी
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